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गन्ना पर 5.5 रुपये प्रति कुंटल अनुदान, उद्योग को राहत

Source : business.khaskhabar.com | May 03, 2018 | businesskhaskhabar.com Commodity News Rss Feeds
 cabinet approves subsidy of rs 55 per quintal to cane farmers 310813नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में बुधवार को गन्ना पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना उत्पादकों को 5.5 रुपये प्रति कुंटल की दर से भुगतान करने का फैसला किया गया। नकदी के संकट से जूझ रही मिलों को राहत देने की दिशा में उठाए गए सरकार के इस कदम का चीनी उद्योग संगठनों ने स्वागत किया है।

यह उत्पादन अनुदान पूर्व की भांति गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा, जिसका मकसद चीनी मिलों को किसानों को गन्ने बकाये के भुगतान में वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी मीडिया को देते हुए कहा, ‘‘इस साल गन्ने की बंपर पैदावार है। गन्ने की लागत कम करते हुए सरकार ने 5.5 रुपये प्रति कुंटल की दर से पेराई किए जाने वाले गन्ने पर मिलों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का फैसला किया है।’’

सीसीईए के फैसले के मुताबिक, वित्तीय सहायता मिलों की तरह सरकार द्वारा सीधे गन्ना उत्पादकों को भुगतान किया जाएगा और इसका समायोजन गन्ने के एफआरपी में किया जाएगा। फैसले के अनुसार वित्तीय सहायता उन्हीं मिलों को प्रदान की जाएगी, जो सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता शर्तें पूरी करेंगी।

पिछले सप्ताह खाद्यमंत्री राम विलास पासवान, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान समेत मंत्री समूह की एक बैठक में चीनी मिलों को सहायता प्रदान करने और किसानों के बकाये का भुगतान करने के उपायों पर विचार-विमर्श के बाद गन्ने पर उत्पादन अनुदान प्रदान करने की सिफारिश की गई थी।

सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि देश में इस साल चीनी का उत्पादन खपत से ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आई है। चीनी के दाम में गिरावट के कारण चीनी मिलें नकदी संकट से जूझ रही हैं और किसानों का बकाया 19,000 करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। लिहाजा, चीनी कीमतों में स्थिरता लाने और नकदी की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार ने पिछले तीन महीनों में कई कदम उठाए हैं।

सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए चीनी पर आयात शुल्क 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया। साथ ही, फरवरी और मार्च 2018 में चीनी उत्पादकों पर प्रतिगामी स्टॉक सीमा लगा दिया और चीनी निर्यात पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया।

सरकार का सबसे बड़ा फैसला इस साल मिलों के लिए 20 लाख टन चीनी निर्यात का न्यूनतम सांकेतिक अनिवार्य कोटा निर्धारित करना रहा है। इससे पहले 2015 में भी सरकार ने मिलों के लिए इसी तरह का 40 लाख टन चीनी निर्यात का अनिवार्य कोटा तय किया था।

इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, ‘‘हालांकि चीनी उद्योग का संकट ज्यादा गंभीर है, क्योंकि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में इतनी गिरावट आ चुकी है कि मिलों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है। मगर सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है और इससे मिलों और किसानों को राहत मिलेगी।’’

उन्होंने इसे चीनी उद्योग को संकट से निकालने की दिशा में सकार की ओर उठाया गया पहला कदम बताया। उन्होंने कहा कि उद्योग संगठन के मुताबिक, मौजूदा पेराई सीजन में एफआरपी में 11 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।

केंद्र सरकार ने पिछले ही साल पेराई सत्र 2017-18 के लिए गन्ने की एफआरपी 230 रुपये से बढ़ाकर 255 रुपये प्रति कुंटल तय कर दिया। एफआरपी पर कुछ राज्यों सरकार ने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) तय किया है।

चीनी उद्योगों ने सरकार की ओर से गन्ना उत्पादकों को 5.5 रुपये प्रति कुंटल की दर से अनुदान देने के फैसले की सराहना की। यह अनुदान किसानों को पूर्व की भांति गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा। एफआरपी केंद्र की ओर से तय गन्ने का मूल्य है जिस पर चीनी मिलें किसानों से गन्ने की खरीद करती हैं।

निजी चीनी उद्योगों का संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि सरकार को गन्ने पर 5.5 रुपये प्रति कुंटल की दर से अनुदान देने में चालू पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में कुल 1,550-1,600 करोड़ रुपये का भार वहन करना होगा।

सहकारी मिलों का संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि इससे किसानों को भारी राहत मिलेगी, क्योंकि उन्हें गन्ने की कीमतों का बकाया मिल पाएगा। साथ ही, मिलों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि यह एफआरपी का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि मिलों को आठ रुपये प्रति किलोग्राम की राहत मिल पाएगी और चीनी निर्यात के भी अवसर खुलेंगे।

उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें भारत की तुलना में करीबन 1,000 रुपये प्रति कुंटल कम होने के कारण भारत चीनी का निर्यात नहीं कर पा रहा है।
(आईएएनएस)

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