बीमा क्षेत्र में एफडीआई नियम होंगे अधिक आसान!
Source : business.khaskhabar.com | Feb 21, 2015 | 

चेन्नई। केंद्र सरकार ने बीमा मध्यस्थों के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढाने को लेकर अपनी सीमा से बाहर जाकर कदम उठाए हैं। उद्योग विशेषज्ञों ने ऎसा अनुमान जाहिर किया है। केंद्र सरकार द्वारा शुक्रवार को बीमा क्षेत्र में एफडीआई से संबंधित नियमों की अधिसूचना जारी किए जाने का स्वागत करते हुए अधिकारियों ने कहा कि उन्हें लगता है कि मंजूरी प्रक्रियाएं अधिक आसान हो सकती थी। अधिसूचित नियमों के मुताबिक बीमा क्षेत्र में 26 प्रतिशत तक एफडीआई के लिए किसी तरह की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी जबकि इससे अधिक या 49 फीसदी तक की एफडीआई के लिए विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से मंजूरी आवश्यक होगी। नियमानुसार बीमा कंपनियों पर 49 प्रतिशत की एफडीआई सीमा बीमा ब्रोकरों, थर्ड पार्टी प्रशासकों, सर्वेक्षणकर्ताओं, घाटा निर्धारकों जैसे मध्यस्थों पर भी लागू होगी। सुप्रीमकोर्ट के वकील और बीमा/कंपनी/निष्पत्ति कानूनों के विशेषज्ञ डी वरदराजन ने मधस्यथों के लिए एफडीआई सीमा बढाने का उल्लेख करते हुए बताया, ऎसा लगता है कि सरकार ने बीमा अधिनियम की धारा 114 के तहत संशोधित बीमा अध्यादेश 2014 के रूप में नियमों का उल्लंघन किया है।
उन्होंने कहा, मेरे विचार में इस तरह का एक उदाहरण है जिसमें सरकार की अति नजरअंदाज के लायक है। उद्योग जगत के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया,हमें पूंजी बढ़ाने के लिए पहले ही बीमा नियामक से मंजूरी लेनी होती है और अब सरकार ने एफआईपीबी मंजूरी के रूप में नौकरशाही की एक और प्रçRया जोड दी है। अधिसूचना के मुताबिक, किसी भारतीय बीमा कंपनी में विदेशी निवेश में बढोतरी विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित किए गए मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों के अनुसार होगी। वरदराजन के मुताबिक, नियमों के तहत 49 प्रतिशत विदेशी निवेश का निर्धारण एक जटिल प्रस्ताव है।
बैंकों को बीमा मध्यस्थों के रूप में कार्य करने की मंजूरी दिए जाने के बावजूद उन पर बैंकिंग क्षेत्र में लागू विदेशी शेयर निवेश सीमा ही लागू रहेगी। किसी भी वित्तीय वर्ष में ऎसी इकाइयों के प्राथमिक कारोबार से अर्जित आमदनी उनकी कुल आमदनी के 50 प्रतिशत से अधिक रहना जरूरी है। इन नियमों के मुताबिक भारतीय बीमा कंपनियों के भारतीय नियंत्रण से मतलब भारत में रह रहे भारतीय नागरिकों या भारतीय कंपनियों के नियंत्रण से है जिनका स्वामित्व और नियंत्रण भारत में रह रहे नागरिकों के हाथों में हो।