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फेड दर बढने से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढी

Source : business.khaskhabar.com | Dec 17, 2015 | businesskhaskhabar.com Market News Rss Feeds
 The Federal Reserve Increases Interest Rates After Almost a Decadeबीजिंग। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा मुख्य दर में 25 आधार अंक वृद्धि करने से सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ी है। यह अलग बात है कि यह फैसला 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती आने के बाद लिया गया है लेकिन समग्र तौर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और सुस्ती बनी हुई है। फेड के फैसले से निश्चित रूप से वैश्विक अर्थव्यवस्था और खास तौर से उभरती अर्थव्यवस्था में यह अनिश्चितता और बढ़ेगी।

कई देशों को यह चिंता हो रही है कि विकसित देशों की मौद्रिक नीति में आ रहे बदलाव से बड़े पैमाने पर पूंजी उनकी अर्थव्यवस्था से बाहर निकलेगी, वैश्विक कर्ज का स्तर बढ़ेगा, बाजार का विश्वास डगमगाएगा और वित्तीय तथा कमोडिटी बाजार में उतार चढ़ाव देखने को मिलेगा, जिसका उभरती अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर होगा।

साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर उम्मीद से कम है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा निवेश की स्थिति बहुत उत्साहवर्धक नहीं है। इसलिए कमजोर अर्थव्यवस्था में तेजी आने में लंबा वक्त लग सकता है। ऐसी स्थिति में फेड द्वारा दर बढ़ाया जाना जोखिम से भरा हुआ है। फेड ने यह भले ही कहा है कि वह धीमे-धीमे दर बढ़ाएगा, लेकिन इसका नकारात्मक असर उभरती अर्थव्यवस्था को झेलना होगा, जिनके वित्तीय बाजार का प्रदर्शन खराब है और आर्थिक परिदृश्य कमजोर है।

ब्याज दर में तेजी से वृद्धि करने से उभरते बाजार से पूंजी का प्रवाह अमेरिका की तरफ बढ़ेगा, जिनकी घटते विदेशी निवेश से हालत खराब है। इसका वैश्विक मुद्रा बाजारों, शेयर बाजारों, बांड और कमोडिटी बाजारों पर भी व्यापक असर होगा। फेड द्वारा इससे पहले दो बार 1994 और 2004 में ब्याज दर बढ़ाए जाने से संबंधित आंकड़ों से पता चलता है कि दर बढ़ाए जाने के अगले साल अमेरिका की ओर पूंजी का प्रवाह 60-80 फीसदी बढ़ा।

वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फायनेंस ने अक्टूबर की रिपोर्ट में कहा था कि 1988 के बाद पहली बार 2015 में उभरते बाजारों में शुद्ध पुंजी प्रवाह नकारात्मक रहेगा। संस्थान द्वारा 30 उभरती अर्थव्यवस्थाओं में कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक इस साल पूंजी का इन देशों से बहिर्प्रवाह 540 अरब डॉलर रहेगा, जो 2014 में 32 अरब डॉलर था। 2016 में यह प्रवाह 306 अरब डॉलर रहेगा।

साथ ही आज जब विभिन्न देश एक दूसरे पर निर्भर हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं, ऐसे में उभरती अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से विकसित अर्थव्यवसथा में आने वाली तेजी भी प्रभावित होगी, जिससे आर्थिक गिरावट का चक्र चलता रहेगा। इसके लिए अमेरिका के लिए बेहतर यही है कि वह ऐसी नीति पर नहीं चले, जिससे उसका तो भला हो, लेकिन दूसरे का बुरा हो।


अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने करीब एक दशक में पहली बार अपनी मुख्य ब्याज दर को 0-0.25 फीसदी से बढ़ाकर 0.25-0.50 फीसदी के दायरे में कर दिया। बुधवार को की गई दर वृद्धि हालांकि काफी कम है, लेकिन इससे पता चलता है कि 2007-08 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में समुचित सुधार हुआ है। फेड का मानना है कि अब अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बैसाखी की जरूरत नहीं है। फेड की नीति निर्मात्री समिति फेडरल ओपेन मार्केट कमेटी (एफओएमसी) की दो दिवसीय बैठक की समाप्ति पर यह घोषणा की गई।

फेड की अध्यक्ष जेनेट येलेन ने संवाददाताओं से कहा, हमने इस समय यह फैसला इसलिए लिया, क्योंकि इसके लिए हमने जो शर्ते रखी थीं, वह पूरी हो चुकी है। ये शर्ते थीं श्रम बाजार में कुछ और सुधार और निकट अवधि में महंगाई दर के दो फीसदी हो जाने का समुचित विश्वास। येलेन ने कहा,वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद जोखिमों के प्रति हम सतर्क हैं, लेकिन अमेरिकी अर्थव्यवस्था में समुचित तेजी दिखाई पड़ रही है। लेकिन इसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर मत पेश कीजिए। यह सिर्फ 25 आधार अंक है। मौद्रिक नीति अब भी उदार बनी हुई है।

फेड की घोषणा के बाद शेयर बाजारों में तेजी देखी गई। सीएनएन के मुताबिक डाऊ जोंस में 100 अंक से अधिक उछाल देखा गया। लिवाली इस बात से बढ़ी कि फेड अगले साल ब्याज दर में धीमी गति से ही वृद्धि करेगा।

फेड ने वित्तीय संकट के बाद दिसंबर 2008 में ब्याज दर को शून्य के पास स्थिर कर दिया था, ताकि अर्थव्यवस्था में प्राण का संचार हो सके। अर्थव्यवस्था में आज काफी सुधार हो चुका है। बेरोजगारी पांच फीसदी रह गई है, जो 2009 में बढ़कर 10 फीसदी हो गई थी। मंदी समाप्त होने के बाद से अब तक 1.2 करोड़ से अधिक लोगों को नौकरी मिल गई है।
(आईएएनएस/सिन्हुआ)