फिच ने भारत की रेटिंग,विश्व बैंक ने GDP वृद्धि अनुमान घटाया
Source : business.khaskhabar.com | Jan 11, 2017 |
वाशिंगटन। नोटबंदी के बाद विश्व बैंक ने अपने पहले पूर्वानुमान में चालू
वित्त वर्ष में देश की जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7 फीसदी कर दिया
है, जबकि बीते साल जून में 7.6 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था।
बैंक ने मंगलवार को जारी की गई वैश्विक अर्थव्यवस्था संभावनाओं की एक
रिपोर्ट में कहा,भारत की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2017 में 7 फीसदी रहने का
अनुमान है, जोकि भारत के विस्तार में अच्छी खासी कमी को दिखाता है। इसमें
कहा गया,अप्रत्याशित रूप से नोटबंदी- ब़डे मूल्य के नोटों को चरणबद्ध रूप
से बाहर करने- ने साल 2017 के तीसरी तिमाही के वृद्धि को दबा दिया।
यह भी
कहा गया,कमजोर औद्योगिक उत्पादन और विनिर्माण और सेवा क्रय प्रबंधक
सूचकांकों से अनुमान है कि वित्त वर्ष 2017 की चौथी तिमाही में भी इनमें
कमजोरी बनी रहेगी।
बीते सप्ताह देश के आधिकारिक सांख्यिकीविद ने भी देश के सकल घरेलू उत्पाद
(जीडीपी) वृद्धि दर के वित्त वर्ष 2016-17 में 7.1 फीसदी रहने का अनुमान
जताया है जबकि वित्त वर्ष 2015-16 में यह 7.6 फीसदी था।
फिच ने भारत की रेटिंग घटाई...फिच रेटिंग ने वित्त वर्ष 2016-17 के लिए भारत की रेटिंग घटाकर 6.9 फीसदी
कर दी है जो कि पहले 7.4 फीसदी थी, लेकिन नोटबंदी के फायदों पर जारी
अनिश्चितता के कारण इसमें कटौती की गई है। फिच रेटिंग ने मंगलवार को जारी
अपनी नवीनतम द्विमासिक न्यूजलेटर में कहा,नोटबंदी के कारण भारत की
अर्थव्यवस्था में अल्पकालिक विघटन आई है, जिसके कारण हमें विकास दर का
पूर्वानुमान घटाना पडा है।
इसमें कहा गया,हालांकि इस कदम से कुछ लाभ की संभावना है, लेकिन यह इतना
सकारात्मक नहीं है कि सरकार के वित्तीय और मध्यम अवधि विकास दर में कोई
बदलाव ला सके। नोटबंदी के असर जितने दिन तक जारी रहेगा, उतना ही इसका
अर्थव्यवस्था पर असर होगा। इसलिए फिच ने 31 मार्च को खत्म होने वाले वित्त
वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान पूर्व के 7.4 फीसदी से घटाकर 6.9 फीसदी कर
दिया है।
नोटबंदी से हालांकि सरकार के राजस्व में वृद्धि हुई है और बैंकों की कर्ज
देने की शक्ति बढी है लेकिन फिच का कहना है,नोटबंदी के कारण लोगों के पास
नकदी की भारी कमी हो गई। दूसरी तरफ किसानों के पास भी खाद-बीज खरीदने के
पैसे नहीं हैं। इससे समूची आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुए और लोगों के
बैंकों की कतार में खडे होने से उत्पादक कार्य का समय भी बरबाद हुआ।
फिच ने कहा कि हालांकि नोटबंदी के पीछे की मंशा सकारात्मक थी और व्यापक
सुधार के प्रयासों को ध्यान में रखकर की गई थी। लेकिन इससे अनिश्चित
दीर्घावधि लाभ की तुलना में कहीं ज्यादा अल्पकालिक नुकसान हुआ।
(IANS)
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