औद्योगिक उत्पादन व मुद्रास्फीति में आई तेजी
Source : business.khaskhabar.com | July 13, 2016 | 

नई दिल्ली। खाद्यान्न की ऊंची कीमतों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति में मई
में बढक़र 5.77 फीसदी हो गई, जबकि औद्योगिक उत्पादन में थोड़ी तेजी देखी गई
और यह जून में 1.2 फीसदी रही। पिछले महीने औद्योगिक उत्पादन में 1.3 फीसदी
गिरावट दर्ज की गई थी। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा मंगलवार
को जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक, जून में वार्षिक
खाद्य मुद्रास्फीति की दर 7.79 फीसदी रही, जबकि मई में यह 7.47 फीसदी थी।
शहरी क्षेत्रों में वार्षिक मुद्रास्फीति की दर 8.16 फीसदी रही, जबकि
ग्रामीण क्षेत्रो में 7.61 फीसदी रही।
लोगों को सबसे ज्यादा दालों
की बढ़ती कीमतों से परेशानी हुई। दालों की श्रेणी में वार्षिक मुद्रास्फीति
की दर 26.86 फीसदी रही। वहीं, सब्जियों में 14.74 फीसदी और चीनी में 16.79
फीसदी रही।
जहां तक औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) के आंकड़ों का सवाल
है तो इस मोर्चे पर थोड़ी राहत मिली और जून में औद्योगिक सूचकांक में 0.7
फीसदी की मामूली बढो़तरी देखी गई, जबकि मई में इसमें 3.7 फीसदी की गिरावट
देखी गई थी।
इसके अलावा दो महत्वपूर्ण सूचकांकों खनन और बिजली में
क्रमश: 1.3 फीसदी और 4.7 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। अप्रैल में खनन में 1.1
फीसदी की गिरावट थी, जबकि बिजली में 14.6 फीसदी की बढ़ोतरी थी।
आधिकारिक
बयान में बताया गया, ‘‘उद्योगों में पिछले साल की समीक्षाधीन अवधि की
तुलना में 22 उद्योग क्षेत्रों में से 14 में मई में सकारात्मक रुख देखा
गया।’’
पिछले छह महीनों में सामान्य सूचकांक में तीन मौकों पर
गिरावट देखी गई। पिछली बार अक्टूबर के महीने में इसमें महत्वपूर्ण बढ़त
देखी गई तब इसमें 9.87 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई थी।
जहां तक
मुद्रास्फीति का सवाल है, आंकड़ों से इसमें क्षेत्रीय स्तर पर अंतर का पता
चलता है। कुल मिलाकर वार्षिक मुद्रास्फीति दर ओडि़शा में सबसे ज्यादा 8.45
फीसदी रही, जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम 3.63 फीसदी रही।
वहीं,
ग्रामीण क्षेत्रों में गुजरात में सबसे अधिक मुद्रास्फीति 8.91 फीसदी देखी
गई, जबकि असम में यह सबसे कम 3.25 फीसदी रही। शहरी क्षेत्रों में तेलंगाना
में यह 7.83 फीसदी रही, जबकि जम्मू और कश्मीर में 2.91 फीसदी रही।
औद्योगिक
उत्पादन के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एसोचैम ने कहा कि एक
महीने की गिरावट के बाद अगले महीने दुबारा इसमें गिरावट देखी गई थी, इसलिए
इसमें जो सुधार नजर आ रहा है, वह काफी नाजुक है। चैम्बर ने नीति निर्माताओं
से संरचनात्मक मुद्दों पर ध्यान देने की गुजारिश की है, जिसमें बढ़ते बैंक
घाटों को समायोजित करने और पूंजी की सीमित उपलब्धता को बढ़ाने की बात कही
गई है।
इसी तरह से फिक्की ने कहा कि उत्पादन की धीमी वृद्धि दर अभी
भी चिंता का विषय है। ‘‘उपभोक्ता और निवेशकों की कमजोर मांग से पता चलता
है कि उत्पादन क्षेत्र की रिकवरी अभी भी काफी धीमी है और संरचनात्मक
मुद्दों को गहराई से सुलझाने की जरूरत है।’’