नोटबंदी: निवेशकों के 10 लाख करोड स्वाहा
Source : business.khaskhabar.com | Nov 22, 2016 |
नई दिल्ली। नोटबंदी के ऎलान को 14 दिन हो चुके हैं। अर्थव्यवस्था में कई
वषों से संचालित 500 और 1000 रूपये की नोट गैरकानूनी करार दी गई है। इस
फैसले के बाद से जहां शेयर बाजार 1800 अंक लुढक चुका है। शेयर बाजार में
मची इस अफरा-तफरी में बीते 14 दिनों शेयरों में आई बिकवाली में निवेशकों को
लगभग 10 लाख करोड का नुकसान उठाना पडा है।
मंगलवार को शेयर बाजार में
शुरूआती गिरावट दर्ज हुई लेकिन दिन के कारोबार में संभलते हुए संवेदी
सूचकांक 200 अंको की बढत के साथ बंद हुआ।
गिरावट का सबसे ज्यादा खामियाजा रियल एस्टेट, कंज्यूमर प्रोडक्ट और ऑटो
कंपनियों को उठाना प़डा है। बीएसई पर लिस्टेड महत्वपूर्ण 500 कंपनियों के
इंडेक्स को सम्मिलित तौर पर लगभग 25 फीसदी का नुकसान उठाना पडा है।
इससे पहले सोमवार तक बाजार में लगातार गिरावट का सिलसिला जारी रहा।
बॉम्बे
स्टॉक एक्सचेंज के आंकडों के मुताबिक बीएसई पर लिस्डेट कंपनियों का मार्केट
कैपिटलाइजेशन 8 नवंबर को लगभग 112 लाख करोड रूपये था। 14 दिन से जारी
नोटबंदी संकट के बाद 21 नवंबर को यह गिरकर 102 लाख करोड रूपये रह गया। यानी
इन 14 दिनों के दौरान इन कंपनियों के शेयर में निवेश कर बैठ लोगों को लगभग
10 लाख करोड रूपये का नुकसान उठाना पडा है।
सेंसेक्स 8 नवंबर को 27,591 के स्तर पर था। नोटबंदी के दौरान यह लगभग 1800
अंकों की गिरावट देखते हुए 25,765 के स्तर पर पहुंच गया। साल और तारीख के
अनुपात में सेंसेक्स पर लगभग 2 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है।
एक साल पहले
के आंकडों को देखे तो 21 नवंबर 2015 को प्रमुख सूचकांक 26,000 के स्तर के
निचे था। मार्च 2016 में बजट के दबाव में शेयर बाजार गोते खाता हुआ 23,000
के स्तर के नीचे पहुंच गया था।
लेकिन इसके बाद शेयर बाजार ने अगले 8 महीनों (8 नवंबर) तक लंबी छलांग लगाते
हुए 29,000 के उच्च स्तर को छू लिया। इस छलांग में माना जा रहा था कि
बाजार अगले बजट (फरवरी 2017) तक 30,000 के स्तर को पार कर लेगा। लेकिन
नोटबंदी के फैसले ने बाजार का सेंटीमेंट इस कदर खराब किया कि बीते 8 महीनों
के दौरान निवेशकों को हुआ सारा मुनाफा बराबर हो गया और बाजार फिर 2015 के
स्तर पर पहुंच गया।
हालांकि शेयर बाजार के जानकारों के मुताबिक बीते 14 दिनों से जारी गिरावट
यह गिरावट सिर्फ नोटबंदी के चलते नहीं है। इस गिरावट के लिए कुछ हद तक
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप की जीत और एक बार फिर से
इस कयास का लगना कि अमेरिकी केन्द्रीय बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर सकती
है भी जिम्मेदार है।