यूपी-एमपी में जडी-बूटी का काला धंधा जोरों पर
Source : business.khaskhabar.com | Nov 14, 2015 | 

ललितपुर। प्रकृति ने मनुष्य की सेहत संवारने के लिए बहुत कुछ दिए हैं। जंगली क्षेत्रों से जडी-बूटी के रूप में मिलने वाले बेशकीमती खजाने की परख न होने के कारण सहरिया समुदाय आज भी घास की रोटियां खाकर जीवन यापन कर रहे हैं, जबकि इन्हीं से जडी-बूटी खरीदकर कुछ लोग काला कारोबार कर मालामाल हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में अकूत प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ जीवन प्रदान करने वाली जडी-बूटियों का भंडार है। इस भंडार के जरिए ही सुदूर ग्रामीण अंचलों के जंगली क्षेत्रों में निवास करने वाले सहरिया समुदाय के लोग जीवन यापन कर रहे हैं, लेकिन कमाई उतनी नहीं हो रही जिससे उनका जीवन संवर सके। जीवन प्रदान करने वाली जडी-बूटियों को एकत्र कर बेचने के बावजूद आज तक सहरिया समुदाय के लोग विकास की मुख्यधारा से नहीं जु़ड सके हैं।
वे खस्ताहाल में हैं, जबकि उन्हीं से सस्ते में ज़डी-बूटी खरीदकर ऊंचे दामों पर बेचने वाले करोडों कमा रहे हैं। उप्र का ललितपुर जिला मध्य प्रदेश की सीमाओं से घिरा हुआ बुंदेलखंड का सबसे पिछडा जनपद है। इस जनपद में विकास के नाम पर यदि उद्योगों की बात करें तो सूबे का सबसे बडा पावर प्रोजेक्ट बजाज कंपनी द्वारा ग्राम चिगलौआ में लगाया गया है। इस तरह कई उद्योग और लगने के आसार भी बढ गए हैं।
सीमावर्ती ग्रामीण अंचलों में लखन्जर पापडा जैसे दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में प्राकृतिक सौंदर्य अकूत है। यहां कई वर्षो पुराने पेड-पौधों से जीवन प्रदान करने वाली जडी बूटियां मिलती हैं। विडंबना देखिए कि सहरिया समुदाय का विकास रूका हुआ है। उनके पास आय के और साधन भी नहीं हैं। पूर्व मंडल आयुक्त (झांसी) सत्यजीत ठाकुर ने ललितपुर जिले के सहरिया आदिवासियों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए ठोस कदम उठाए भी थे, लेकिन उनके सेवानिवृत्त होने पर सहरिया समुदाय फिर से उसी स्थान पर पहुंच गया है।
जडी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध ललितपुर जनपद के ग्राम डोंगरा, पटना (बिहार की राजधानी नहीं), पारौल, गौना, बालाबेहट, महोली, म़डावरा, मदनपुर, सौंरई इत्यादि क्षेत्रों से सहरिया समुदाय के लोग व्यापक पैमाने पर ज़डी-बूटियां मुख्यालय लाते हैं। मुख्यालय पर कुछेक दुकानदार अपने मनमाने दामों पर जडी बूटियों को खरीद कर ऊंचे दामों पर बाहरी जिलों के व्यापारियों को बेच देते हैं।
जडी-बूटी का ललितपुर जिले में कितना उत्पादन है, कितनी आपूर्ति है, कितने दामों पर आती है और कितने में बेची जा रही है, इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को नहीं है। जब एक व्यापारी शिवराम सरावगी से पूछा गया तो उसका स्पष्ट कहना था कि आवक का तो पता नहीं, मगर रोजाना कुछ लोग जडी-बूटियां बेच जाते हैं। उनसे खरीदकर इस धंधे में लगे उसके कारिंदे दिल्ली, इंदौर, मुंबई, झांसी, ग्वालियर व भोपाल जैसे महानगरों में ये जडी-बूटियां ऊंचे दामों में बेच देते हैं।
(आईएएनएस/आईपीएन)