रेटिंग घटाने पर तमतमाए भारत को फिच का जवाब- NPA कानून बना खुश न हों
Source : business.khaskhabar.com | May 13, 2017 |
नई दिल्ली। मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन के भारतीय
अर्थव्यवस्था के बुनियादी कारकों में स्पष्ट सुधार के बावजूद भारत की
रेटिंग का उन्नयन न किए जाने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना
करने पर वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने बयान जारी कर भारत को इसका जवाब दिया
है। फिच के मुताबिक, भारत सरकार ने बैंक एनपीए से लडऩे के लिए जो कदम उठाए
हैं, उसका असर अगले कुछ वर्षों के बाद देखने को मिलेगा। फिलहाल, एनपीए कम
करने के लिए किए जा रहे उपायों के असर से बैंकों के लाभ पर दबाव देखने को
मिलेगा। सुब्रमणियन ने कहा था कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले
में अलग मानदंड अपना रही हैं।
फिच के मुताबिक, यह दबाव कुछ कमजोर बैंकों
के लिए ज्यादा परेशानी खड़ी कर सकता है। कमजोर बैंकों को आने वाले दिनों
में पूंजी की दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि फिच ने माना कि
एनपीए के लिए किए जा रहे प्रावधानों से भारत में बैंकिंग व्यवस्था आने वाले
कुछ वर्षों में मजबूत हो जाएगी। फिच ने माना है कि नोटबंदी की प्रक्रिया
से भारत के बैंकों में कम लागत पर हुई जमा राशि में वृद्धि हुई है। इसके
साथ अब यह साफ हो चुका है कि इस जमा राशि का अधिकांश हिस्सा अब बैंकों के
पास जमा रहेगा। यह बैंकों के लिए अच्छी बात है लेकिन फिच ने यह भी कहा है
कि इससे बैंकों को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि एनपीए की
स्थिति से निपटने में उनकी कमाई और ग्रोथ को लगने वाले झटके से निपटने के
लिए यह राशि ज्यादा कारगर नहीं होगी।
रेटिंग एजेंसी ने भारत को दिया सबसे निचला निवेश ग्रेडवैश्विक
एजेंसियों ने भारत को सबसे निचले निवेश ग्रेड में रखा है, जिससे वैश्विक
बाजारों में ऋण की लागत उंची पड़ती है, क्योंकि इससे निवेशकों की अवधारणा
जुड़ी होती है। सुब्रमणियन ने इस पर सवाल करते हुए कहा है कि एजेंसियों के
इस रिकॉर्ड को देखते हुए (जिसे हमें खराब मानक कहते हैं) मेरा सवाल यह है
कि हम इन रेटिंग एजेंसियों के विश्लेषण को गंभीरता से क्यों लेते हैं।’
सुब्रमणियन ने कहा था कि नीतिगत फैसलों से पहले विशेषज्ञों के आकलन
महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन एक बार निर्णय होने के बाद यह देखने वाली बात
होती है कि किस तरह विश्लेषण को लेकर बोली बदलती है। विश्लेषक आधिकारिक
फैसले को तर्कसंगत ठहराने के लिये पीछे हटने लगते हैं।
मोदी सरकार भी नाराजआर्थिक
मामलों के सचिव शक्तिकान्त दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग
एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्चाई
से कोसो दूर है। उन्होंने रेटिंग एजेंसियों को आत्म निरीक्षण करने की
हिदायत देते हुए कहा कि जो सुधार शुरू किये गये हैं, उन्हें देखते हुये
निश्चित ही रेटिंग में सुधार का मामला बनता है।
भारत पहले भी रेटिंग
एजेंसियों के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है। भारत का कहना है कि भुगतान
जोखिम मानदंडों के मामले में दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति
अधिक अनुकूल है। विशेष रूप से एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स पर सवाल उठे हैं
जिसने बढ़ते कर्ज और घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को एए- रखा
है। वहीं भारत की रेटिंग को कबाड़ या जंक से सिर्फ एक पायदान ऊपर रखा गया
है। मूडीज और फिच ने भी इसी तरह की रेटिंग दी है।
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