businesskhaskhabar.com

Business News

Home >> Business

फॉक्सवेगन के सीईओ मार्टिन विंटरकॉम ने इस्तीफा दिया

Source : business.khaskhabar.com | Sep 23, 2015 | businesskhaskhabar.com Automobile News Rss Feeds
 Volkswagen admits of having derangement in 2 million carsफ्रैकफर्ट। बुधवार रात खबर आई कि फॉक्सवेगन के सीईओ मार्टिन विंटरकॉम ने डीजल स्र्कैन्डल के चलते इस्तीफा दे दिया है। बता दें,जर्मनी की प्रमुख कार निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन ने मंगलवार को मान लिया कि उसने दुनियाभर में एक करोड दस लाख डीजल कारों की इमिशन टेस्टिंग (प्रदूषण जांच) में गडबडी कराई थी। कार में ऎसा सॉफ्टवेयर डाला गया था जो प्रदूषण परीक्षणों को चकमा दे सकता है। खास बात यह है कि अमेरिका में कंपनी की इस धोखाधडी को पकडने वाले रिसर्चरों में एक भारतीय मैकेनिकल इंजीनियर अरविंद थिरूवेंगडम भी शामिल है।




 फॉक्सवैगन यूएस के सीईओ माइकल हॉर्न ने कहा, हमारी कंपनी ने अमेरिकी एन्वायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी, कैलिफोर्निया एयर रिर्सोसेज बोर्ड और आप सभी के साथ बेईमानी की। इस नई घोषणा से कंपनी के शेयरों में तत्काल 20 प्रतिशत तक की और गिरावट आ गई।

5 लाख गाडियां वापस....


सच सामने आने के बाद अमेरिकी अधिकारियों ने फॉक्सवैगन कंपनी को कहा कि वह अमेरिका से अपनी 5 लाख गाडियां वापस बुलाए। वहीं, जर्मन कारमेकर के मुताबिक, दुनिया भर के 1 करोड 10 लाख इंजन के बेंच टेस्ट रिजल्ट और रोड पर इस्तेमाल के दौरान के नतीजों में काफी अंतर मिला। कंपनी ने यह पहली बार माना है कि अमेरिका से बाहर बेची गई डीजल कारों में भी धांधली करने वाला सॉफ्टवेयर पडा हुआ है। इससे पहले, कंपनी ने माना था कि इस समस्या से सिर्फ अमेरिका की 5 लाख कारें ही प्रभावित हैं। कंपनी ने कहा कि वह इस समस्या वाली कारों की सर्विस के लिए 7.3 बिलियन डॉलर (करीब 46 हजार करोड) की रकम का इंतजाम अलग से किया है।

ऎसे की धोखाधडी....


सॉफ्टवेयर लगाकर टेस्टिंग में इमिशन कंट्रोल किया। यूएस एन्वायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) ने कहा कि इमिशन टेस्टिंग के लिए फॉक्सवैगन ने एक अलग डिवाइस बना रखी थी। यानी जब कभी फॉक्सवैगन की कारें इमिशन टेस्टिंग के लिए जाती थीं तो यह डिवाइस पॉल्यूशन को कंट्रोल कर लेती थी। इसके बाद जब भी यह कार नॉर्मल ड्राइविंग सिचुएशंस की टेस्टिंग पर जाती थी तो इमिशन कंट्रोल का सॉफ्टवेयर अपने आप बंद हो जाता था। सॉफ्टवेयर ऎसा था जो टॉर्क को कंट्रोल कर एवरेज और कार का ओवरऑल परफॉमेंüस बढा देता था। वहीं, कार्बन इमिशन को घटा हुआ बताता था।

भंडाफोड करने वाले तीन इंजीनियरों में एक भारतीय....


कंपनी की इस धोखाधडी का भंडाफोड करने वाले तीन इंजीनियरों में एक भारतीय मैकेनिकल इंजीनियर अरविंद थिरूवेंगडम भी शामिल है। 32 साल के अरविंद थिरूवेंगडम वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अल्टरनेटिव फ्यूल्स, इंजन्स एंड इमिशंस के रिसर्च इंजीनियर हैं। 2004 में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से ग्रेजुएट अरविंद पीएचडी के लिए अमेरिका गए थे। अरविंद खाली वक्त में एआर रहमान का म्युजिक सुनना पंसद करते हैं। उन्होंने कहा, मैं हमेशा से इंजनों को लेकर कुछ नया करना चाहता था। गडबडी को पकडने वाले तीनों इंजीनियरों के वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में पीएचडी करने के दौरान सुपरवाइजर रह चुके मृदुल गौतम ने उन्हें अपने फील्ड में बेस्ट करार दिया। मृदुल भी भारतीय मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने ग्रेजुएशन आईआईटी दिल्ली से किया था।

ऎसे लगाया पता....


अरविंद और उनके दो साथियों डेनियल कार्डर और मार्क बेश्च का मानना है कि उन्होंने वही किया, जिसके लिए उन्हें ट्रेंड किया गया था। उनका काम डीजल इंजन से होने वाले प्रदूषण के बारे में पता लगाना था। दो साल पहले उनके द्वारा लॉस एंजिलिस और कैलिफोर्निया में किए गए टेस्ट के नतीजों के बाद हुए डेवलपमेंट के कारण ही अमेरिकी इन्वायरन्मेंट रेगुलरिटी बॉडीज फॉक्सवैगन की इस धोखाधडी को पकड सकी। तीनों इंजीनियरों ने इंटरनेशनल काउंसिल ऑन ट्रांसपोर्टेशन के रूटीन रिसर्च प्रपोजल पर काम करते हुए इसे धोखे को पकडा। वे यह जानकर हैरान रह गए कि फॉक्सवैगन की जेटा कार लैब के टेस्ट से 15 से 35 गुना ज्यादा नाइट्रोजन ऑक्साइड पैदा कर रही हैं। वहीं, पीसैट ने लैब की सीमा से 5 20 फीसदी ज्यादा प्रदूषण किया।

इस रिपोर्ट के आधार पर मई 2014 में कैलिफोर्निया एयर पॉल्यूशन रेगुलेटर आऎर ईपीए ने फॉक्सवैगन को इसकी जांच कर समस्या हल करने का आदेश दिया। इस पर कंपनी ने कहा कि समस्या हल कर ली गई है। कुछ महीनों बाद जब दोबारा कंपनी के नए मॉडल की लैब रिपोर्ट और रोड परफॉर्मेस की जांच हुई तो स्थिति पहले जैसे ही पाई गई। इसके बाद ईपीए ने अपने स्तर पर जांच शुरू की और 18 सितंबर, 2015 को ईपीए ने कंबनी को लेटर जारी कर नियमों के उल्लंघन को दोषी करार दिया।

अरविंद के मुताबिक, हमने सिर्फ इतना कहा कि फील्ड में डीजल इंजनों का इमिशन का स्तर लैब में किए गए टेस्ट से ज्यादा पाया गया। यह कुछ ऎसा था, जिसे हम एक्सप्लेन नहीं कर पाए। अमेरिकी मैगजीन "कार एंड ड्राइवर" से बातचीत में इस टीम के अन्य रिसर्चर कार्डर ने कहा, अगर किसी कार के लैब और फील्ड में इमिशन के नतीजों में फर्क हो तो साफ है कि किसी सॉफ्टवेयर का सहारा लिया जा रहा है।

ऎसा क्यों किया वॉक्सवैगन ने!...


वर्ष 2009 में हुई संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट मीट में अमेरिका, चीन, यूरोप सहित कई बडे देशों ने ग्लोबल वार्मिग को कम करने पर सहमति जताई। इसके लिए इमिशन (प्रदूषण) कम करने की योजना बनी। ट्रांसपोर्ट से सबसे ज्यादा एयर प्रदूषण होता है। ऎसे में नई गाडियों को लेकर अमेरिका सहित कई देशों ने इससे जुडे नियम सख्त कर दिए। साथ ही नियमों को ना मानने वाली कंपनियों पर भारी पैनल्टी का प्रावधान भी रखा। इसी सख्ती के बाद साल 2009 के अंत में फॉक्सवैगन ने अपनी कार में एईसीडी (ऑक्सीलरी इमिशन कंट्रोल) नाम का सॉफ्टवेयर लगाकर ईपीए के पास टेस्टिंग के लिए भेजना शुरू किया।