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भारत सबसे बडा ड्रोन आयातक देश

Source : business.khaskhabar.com | May 05, 2015 | businesskhaskhabar.com Business News Rss Feeds
 India declared as biggest Importing country, Must Read नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप से हुई तबाही का जायजा लेने के लिए ड्रोन का उपयोग करने के राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल के फैसले से पता चलता है कि भारत ने इन मानव रहित विमानों (यूएवी) को कितने उत्साह के साथ लिया है। यूएवी को आम तौर पर ड्रोन कहा जाता है। 1985 से 2014 तक यूएवी के वैश्विक आयात में भारत 22.5 फीसदी हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद क्रमश: ब्रिटेन और फ्रांस रहे हैं।

ड्रोन या यूएवी आकाश में उ़डने वाला एक पायलट रहित वाहन है। इसका उपयोग टोही गतिविधियों में होता है। ड्रोन काफी सस्ता होता है और इसके साथ मानव जीवन के खोने का कोई डर नहीं होता है। इस आलेख में आयात/निर्यात संबंधी आंक़डे ही प्रस्तुत किए गए हैं, लेकिन हर देश अपने लिए भी ड्रोन का निर्माण करता है, इसलिए यह कहना कठिन है कि किस देश के पास कितनी संख्या में ड्रोन हैं

वैश्विक संघर्ष-शोध संस्थान "स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीटयूट" (एसआईपीआरआई) के आंक़डे के मुताबिक, 1985 से 2014 के बीच पूरी दुनिया में 1,574 ड्रोनों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खरीदारी हुई। इनमें से 16 हथियारबंद ड्रोन थे। 1985 से 2014 के बीच ड्रोन व्यापार 137 फीसदी बढ़ा। 1985 से 1990 के बीच 185 ड्रोनों का वैश्विक व्यापार हुआ। यह संख्या 2010 से 2014 के बीच बढ़कर 439 हो गई। मिस्त्र और इटली भी ब़डे ड्रोन आयातक हैं। गत दशक में 16 हथियारबंद ड्रोन का भी व्यापार हुआ। भारत ने पहली बार 1998 में इजरायल से ड्रोन खरीदा था। ब्रिटेन ने पहली बार 1972 में कनाडा से ड्रोन खरीदा था। जापान ने 1968 में अमेरिका से ड्रोन खरीदा था और ड्रोन खरीदने वाला वह पहला देश है। एसआईपीआरआई के मुताबिक, भारत ने ड्रोन की अधिकतर खरीदारी इजरायल से की है। देश में आयातित 176 ड्रोनों में से 108 खोजी ड्रोन हैं और 68 हेरॉन ड्रोन हैं। ड्रोन के वैश्विक निर्यात में इजरायल का योगदान सर्वाधिक 60.7 फीसदी और अमेरिका का 23.9 फीसदी है। कनाडा का 6.4 फीसदी है। इजरायल ने 1980 से अब तक 783 ड्रोनों का निर्यात किया है। भारत में इस्तेमाल हो रहे प्रमुख ड्रोन इस प्रकार हैं : नेत्र : आईडियाफोर्ज टेकAोलॉजीज और रक्षा शोध एवं विकास संगठन द्वारा विकसित। यह हेलीकॉप्टर की तरह सीधे ऊपर उठ सकता है। यह वापस अपने पूर्व स्थान पर पहुंच सकता है। इसका उपयोग हथियारबंद और अर्धसैनिक बल कर रहे हैं।

राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल ने 2013 में उत्तराखंड बाढ़ में नुकसान का मूल्यांकन करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। निशांत : दिन/रात की गश्ती में उपयोग। इसे भारतीय सेना में शामिल किया जा रहा है। शुरू में इसकी चार इकाइयां गठित की जाएगी। पंछी : निशांत का ही पहियों वाला संस्करण। छोटी हवाईपट्टी से उ़डने और उस पर उतरने में सक्षम। पहली उ़डान दिसंबर 2014 में। रूस्तम-1 : सभी मौसम के लिए उपयुक्त, मध्य ऊंचाई और लंबे समय तक आकाश में रहने में सक्षम। ऎन मौके पर तस्वीर और रेडियो सिगAल भेजने में सक्षम। रूस्तम-2 : विकास की अवस्था में। यह लगातार 24 घंटे तक 30 फुट की ऊंचाई पर रह सकेगा। औरा : युद्धक ड्रोन। 30 हजार फुट ऊंचाई पर उ़डने में सक्षम। प्रक्षेपास्त्र, बम और लक्षित प्रक्षेपास्त्र दागने में सक्षम। लक्ष्य : दूरवर्ती क्षेत्रों में संचालित करने योग्य।

सेना की तीनों इकाइयों के लिए तोप और मिसाइल चलाने का प्रशिक्षण ले रहे लोगों के लिए और हवाई रक्षा पायलटों के लिए इसका इस्तेमाल लक्ष्य के रूप में भी किया जाता है। हथियारबंद ड्रोन का पहली बार 2007 में अमेरिका ने निर्यात किया था। अमेरिका ने एमक्यू-9 ड्रोन का ब्रिटेन को निर्यात किया था। ब्रिटेन ने इसका उपयोग अफगानिस्तान में किया था। चीन 2014 में हथियारबंद ड्रोन का दूसरा सबसे ब़डा निर्यातक बन गया। उसने आतंकवादी संगठन बोको हरम के विरूद्ध उपयोग किए जाने के लिए इसे नाइजीरिया को बेचा था। ड्रोन की दुनियाभर में काफी आलोचना भी की जा रही है, क्योंकि इसके हमले की जद में ब़डी संख्या में आम नागरिक भी आते रहे हैं। भारत में इसका उपयोग मुख्यत: टोही गतिविधियों में हो रहा है। पाकिस्तान सीमा पर उपयोग होने वाले ड्रोनों के मुकाबले चीन सीमा पर तैनात भारतीय ड्रोन अधिक क्षमता वाले हैं। (इंडियास्पेंड डॉट ऑर्ग के साथ बनी एक व्यवस्था के तहत। यह एक गैर लाभकारी पत्रकारिता मंच है, जो जनहित में काम करता है) (IANS)