भारत में 30 लाख किसान रेशा उत्पादन में शामिल : राधा मोहन
Source : business.khaskhabar.com | July 03, 2017 |
गांधीनगर। केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए प्राकृतिक रेशा क्षेत्र (नेचुरल फाइबर सेक्टर) की समग्र वृद्धि बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत में 30 लाख किसान प्राकृतिक रेशों के उत्पादन में शामिल हैं।
राधा मोहन ने यहां आयोजित टेक्सटाइल इंडिया समारोह में कहा, ‘‘प्राकृतिक रेशा भारतीय वस्त्र उद्योग की रीढ़ है। यह रेशा उद्योग में 60 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखता है। कृषि उद्योग के पश्चात भारतीय वस्त्र उद्योग लाखों लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार देता है। लघु और मध्यम उद्योग प्राकृतिक रेशों के उप-उत्पादों का उपयोग करते हैं। दुनिया भर में 7.5 करोड़ से अधिक परिवार प्राकृतिक रेशों के उत्पादन में सीधे शामिल हैं और भारत में 30 लाख किसान प्राकृतिक रेशों के उत्पादन में शामिल हैं।’’
कृषि मंत्री ने कहा, ‘‘वर्तमान समय में प्राकृतिक रेशों को ऐक्रेलिक, पॉलिएस्टर जैसे कृत्रिम रेशों से कठोर प्रतिस्पर्धा और चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। एक सदी पहले इस्तेमाल में लाए जाने वाले रेशे केवल प्राकृतिक ही हुआ करते थे, जबकि अब इनका हिस्सा 40 फीसदी से कम पाया गया है। 1990 के दौरान अकेले कपास का योगदान 50 फीसदी रहा। वर्तमान में विश्व परिधान बाजार में कपास का योगदान 30 फीसदी से भी कम हो गया है।’’
कृषि मंत्री ने कहा, ‘‘वर्तमान में 90 देश कपास का उत्पादन कर रहे हैं। भारतीय वस्त्र उद्योग के कुल रेशों की खपत का 60 फीसदी भाग कपास का है। भारत दुनिया में कपास का प्रमुख उत्पादक है, जो विश्व का लगभग एक-तिहाई और वैश्विक उत्पादन का एक-चौथाई हिस्सा है। वर्ष 2016-17 के दौरान भारत ने 1.05 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र से 58 लाख टन कपास का उत्पादन किया, जिसकी उत्पादकता लगभग 550 किलो लिंट/हेक्टेयर की पाई गई।’’
उन्होंने कहा कि कपास की उत्पादकता बढ़ाने हेतु उच्च उपज देने वाली किस्मों, उत्तम कृषि-विज्ञान पद्धतियों और अभिनव प्रौद्योगिकियों की नितांत आवश्यकता है।
राधा मोहन ने कहा, ‘‘औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक रेशों में से एक है जूट। जूट की खेती व उद्योग-व्यापार से लगभग 50 लाख लोगों को आजीविका प्राप्त होती है। वर्तमान में जूट को भू-क्षरण रोकने तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्र में कार के इंटीरियर हिस्सों के निर्माण में इस्तेमाल किया जा रहा है। आनेवाले समय में जूट और सिसल रेशों से निर्मित प्राकृतिक भू-वस्त्रों की मांग में नियमित वृद्धि अनुमानित की जा रही है।’’
राधा मोहन ने कहा, ‘‘भारत में जूट की औसत उत्पादकता लगभग 2300-2400 किलोग्राम रेशा प्रति हेक्टेयर है। हमारी उत्पादकता का स्तर बांग्लादेश से बेहतर तो है पर उत्पादकता में वृद्धि लाने की और भी संभावनाएं हैं।’’
उन्होंने बताया कि दुनिया में व्यावसायिक रेशेदार फसलों में सन चौथे स्थान पर है। ‘‘यह सभी कपड़ा रेशों की तुलना में सबसे अधिक प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल है। भारत में सन रेशे के क्षेत्र और कुल उत्पादन बहुत कम है। इसका मुख्य कारण उपज देने वाली किस्मों की अनुपलब्धता और उत्पादन प्रौद्योगिकी की अनुपलब्धता है।’’
उल्लेखनीय है कि देश में सभी कपड़ा निर्माता हर साल 60 करोड़ रुपये मूल्य के सन रेशे यूरोपीय देशों से आयात करते हैं।
(आईएएनएस)
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