आपदा में बैंक खाते से नहीं मिलती वित्तीय सुरक्षा
Source : business.khaskhabar.com | Feb 23, 2016 | 

विश्व बैंक के आंक़डों के मुताबिक, देश में 2011 में 15 वर्ष से अधिक उम्र वाली सिर्फ 35 फीसदी आबादी के पास बैंक खाता था। 2014 में हालांकि ऎसी 53 फीसदी आबादी के पास बैंक खाता हो गया। संयोगवश इसी साल देश के दो तटवर्ती राज्यों आंध्र प्रदेश और ओडिशा को फेलिन और हुद-हुद तूफान का सामना करना प़डा था। यह जानने के लिए इन आपदाओं के समय लोग वित्तीय रूप से कितने सुरक्षित थे, हमने दोनों राज्यों में आपदा से सर्वाधिक प्रभावित इलाकों में करीब 200 परिवारों से बात की। इसके नतीजे इस प्रकार रहे। 94 फीसदी परिवारों के पास बैंक खाता था। कई परिवारों के पास कई खाते थे। 28 फीसदी के पास प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत खोले गए खाते थे। 16 फीसदी ने बताया कि तूफान के बाद मुआवजा हासिल करने के लिए उन्होंने खाते खोले थे। 13 फीसदी ने तूफान से पहले दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए खाते खोले। ज्यादातर खाताधारकों ने खाते का उपयोग सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए किया। सिर्फ सात फीसदी ने काम-काज संबंधी लेन-देन के लिए इसका उपयोग किया और 19 फीसदी ने बचत योजना के लिए इसका उपयोग किया।
लोगों ने विभिन्न प्रकार की योजनाओं में निवेश भी किया था। सर्वेक्षण के दौरान पता चला कि अधिकतर परिवारों ने चिट-फंड में निवेश किया है। कई महिलाएं स्वयं सहायता समूह में निवेश करती हैं। कई लोगों ने बैंक में पैसे जमा नहीं रखकर अपने कारोबार में निवेश किया हुआ है। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या बैंक खाते से वित्तीय सुरक्षा मिलती है या क्या ये प्राकृतिक आपदाओं के समय लोगों की मदद कर पाते हैंक् सर्वेक्षण से पता चला कि आपदा के समय पहली मदद दोस्तों से मिलती है, सरकार से नहीं। 76 फीसदी लोगों ने आपदा से उबरने के लिए दोस्तों या साहूकारों से 2-5 फीसदी मासिक ब्याज दर पर तीन हजार से लेकर दो लाख रूपये तक ऋण लिए।
चूंकि अधिकांश के पास बैंक खाता था, इसलिए एक निश्चित मुआवजा की जगह यदि सरकार कम ब्याज दर पर ऋण सुविधा उपलब्ध कराती तो लोगों को ऊंची ब्याज दर के चंगुल से मुक्ति मिलने में मदद मिलती। सर्वेक्षण का समग्र तौर पर नतीजा यह रहा कि जिन क्षेत्रों के पास नकदी का अभाव है, वहां आपदा से उबरने में बैंक खाता उपयोगी है, लेकिन वित्तीय सुरक्षा के लिए यही काफी नहीं है। (आंक़डा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत। ये लेखक के निजी विचार हैं)
(आईएएनएस विशेष)