पारंपरिक ईधन का नया विकल्प कंप्रेस्ड बायोगैस
Source : business.khaskhabar.com | Mar 14, 2014 |
नई दिल्ली| भारती प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी), दिल्ली ने हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के सहयोग से कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) से चलने वाली देश की पहली कार का टेस्ट ड्राइव किया है। यह टेस्ट ड्राइव 15,000 किलोमीटर तक सफलतापूर्वक किया गया, जिससे वाहनों में इस्तेमाल होने वाले पारंपरिक ईंधनों पर निर्भरता कम होने की उम्मीद जताई जा रही है।
आईआईटी, दिल्ली ने राजस्थान के भीलवाड़ा में एक प्रायोगिक बायोगैस संयंत्र की स्थापना की है। एक बायोगैस अपग्रेडिंग प्रणाली (संयंत्न) संस्थान में ही स्थापित की गई है। इस अपग्रेडिंग व कंप्रेस्ड करने की प्रक्रिया का इस्तेमाल खाना पकाने और ईंधन के रूप में करने के लिए संस्थान ने इसका पेटेंट भी करा लिया है।
इस प्रक्रिया के तहत एक दिन में 500 घन मीटर से अधिक बायोगैस का शोधन किया जा सकता है, जिसके लिए मवेशियों के 20 टन और सुअर के 10 टन गोबर, मुर्गी पालन घर के अपशिष्ट व खाद्य अपिशष्ट की आवश्यकता होगी।
यह संयंत्र एक दिन में कम-से-कम 200 किलोग्राम सीबीजी का उत्पादन करने की क्षमता रखता है। इस पूरी प्रक्रिया में बायोगैस शोधन संयंत्र, उच्च दाब वाला कंप्रेसर और सिलिंडर स्टोरेज कास्केड का इस्तेमाल किया जाता है।
एक दिन में 1,000 घन मीटर सीबीजी के उत्पादन की लागत 2.5 करोड़ रुपये आती है। इसका इस्तेमाल एलपीजी के विकल्प के रूप किया जा सकता है, जिसके लिए ग्राहकों को प्रति किलोग्राम 70 रुपये खर्च करने पड़ेंगे।
परियोजना का नेतृत्व करने वाले तथा आईआईटी, दिल्ली के सेंटर आफ रूरल डेवलपमेंट एंड टेक्नोलॉजी (सीआरडीटी) के बायोगैस डेवलपमेंट एंड ट्रेनिंग सेंटर (बीडीटीसी) में प्राध्यापक वीरेंद्र कुमार विजय के मुताबिक, सीबीजी (24.11 किलोमीटर/ किलोग्राम ) और सीएनजी (24.38 किलोमीटर/किलोग्राम) की क्षमता में कोई विशेष अंतर नहीं है।
सीबीजी की आवश्यकता क्यों पड़ी, इस पर वीरेंद्र कहते हैं, "सरकार ने ईंधन की बढ़ती कीमत और पर्यावरण से संबंधित कठोर नियंत्रण जैसे दो मुख्य वजहों को देखते हुए सभी स्रोतों (डेयरी, बूचड़खाने, चीनी उद्योग, मुर्गीपालन घर) से बायोगैस बनाने (एनेरोबिक डाइजेशन) की संभावना तलाशनी शुरू की है।"
वह कहते हैं कि इंडियन पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस स्टैटिस्टिक्स के 2011-12 के अनुमान के मुताबिक, सभी संभावित स्रोतों से 48,38.2 करोड़ घन मीटर प्रति सालाना बायोगैस बनाया जा सकता है। यह मात्ना ईंधनों की 43.4 फीसदी मांग और कुकिंग गैस की 41.7 फीसदी मांग को पूरा कर सकती है।
वीरेंद्र बताते हैं कि आईआईटी, दिल्ली ने सीएनजी कार में सीबीजी ईंधन का इस्तेमाल करते हुए 15,000 किलोमीटर तक इसका टेस्ट ड्राइव किया और इस दौरान पाया कि इस कार को सीबीजी के इस्तेमाल के अनुकूल बनाने के लिए किसी भी तरह के बदलाव की आवश्यकता नहीं है।
सीबीजी की संभावनाओं के बारे में वीरेंद्र ने कहा, "देश में औद्योगीकरण और बढ़ती जनसंख्या ने औद्योगिक क्षेत्रों- चीनी, पेपर, खाद्य प्रसंस्करण, डेयरी, बुचड़खाने, भट्टी और मुर्गीपालन घर-में भारी मात्रा में तरल व ठोस अपशिष्ट में वृद्धि की है, जिससे देश में मध्यम और बड़े बायोगैस संयंत्र को स्थापित करने की काफी संभावना मौजूद है। यह तकनीक कम लागत में मध्यम व बड़े स्तर पर बायोगैस बनाने की क्षमता रखता है।"
वीरेंद्र कहते हैं कि ऊर्जा बचत और जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए आज पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की जगह नवीकरणीय स्रोतों की तरफ ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है और इसमें बायोगैस मुख्य भूमिका निभा सकता है।