रबर की नई किस्म खोजी गई, बदल जाएगा टायर उद्योग
Source : business.khaskhabar.com | Sep 27, 2015 | 

बेंगलुरू। वाहन चालकों एवं मालिकों के लिए खुशखबरी है। जर्मनी और फिनलैंड के वैज्ञानिकों के एक दल ने एक नए किस्म की रबर विकसित की है, जिससे बने टायर पंचर होने पर खुद-ब-खुद भर जाएंगे। इसका मतलब टायर पंचर होने पर मेकैनिक बुलाने की जरूरत नहीं रह जाएगी।
अमेरिका की शोध पत्रिका "अमेरिकन केमिकल सोसायटी" के ताजा अंक में प्रकाशित इस अध्ययन के जरिए मुख्य लेखक अमित दास ने इस नए किस्म की रबर की खोज के बारे में बताया। यह रबर लंबे रेशों से बना होता है। टायर जब पंचर होता है तो ये रेशे टूट जाते हैं।
अब तक टायर निर्माता रबर को मजबूत बनाने के लिए सल्फर और इलास्टिक का मिश्रण करते रहे हैं। लेकिन जब टायर में कांच का कोई टुक़डा या कोई नुकीली चीज धंस जाती है तो इसे लंबे समय तक इस्तेमाल करने लायक नहीं बनाया जा सकता था। अब पहली बार वैज्ञानिकों ने टायर के लिए एक ऎसे रबर की खोज की है, जो इन सबसे मुक्ति दिला देगा। दास और उनके सहयोगियों ने अपने अध्ययन में लिखा है, ""यहां हम वाणिज्यिक तौर पर उपलब्ध और बहुतायत में इस्तेमाल होने वाले सामान्य रबर को अत्यधिक तन्यता वाले रबर में तब्दील करने का एक सामान्य तरीका बता रहे हैं, जिससे टायर पंचर होने पर खुद-ब-खुद रिपेयर हो जाएंगे।""
उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया में रबर की मजबूती में कोई कमी नहीं आएगी। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाले फिलर जैसे सिलिकॉन या कार्बन ब्लैक का मिश्रण रबर को और मजबूती प्रदान कर सकता है। दास और उनके सहयोगियों ने बताया कि लुडविक लीबलेर के नेतृत्व में फ्रांसीसी वैज्ञानिकों द्वारा 2008 में की गई खोज से उन्हें इस अनुसंधान की प्रेरणा मिली। लीबलेर और अन्य फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने ऎसा रबर विकसित किया था, जो सामान्य रबर की अपेक्षा कई गुना तन सकता था। हालांकि वह रबर मजबूत नहीं होता था। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, रबर की इन नई किस्म की खोज के साथ ही रबर प्रौद्योगिकी में अनुसंधान की नई दिशाएं खुल जाती हैं और वाणिज्यिक तथा अकादमिक स्तर पर भी इसे आकर्षित करने वाला माना जा रहा है।