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भारत का राजकोषीय घाटा अप्रैल-अक्टूबर अवधि में 8.25 लाख करोड़ रुपए रहा

Source : business.khaskhabar.com | Nov 28, 2025 | businesskhaskhabar.com Business News Rss Feeds
 india fiscal deficit stood at rs 825 lakh crore in the april october period 771569नई दिल्ली। भारत का राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 26 के पहले सात महीनों (अप्रैल-अक्टूबर अवधि) में बजट अनुमान का 52.6 प्रतिशत या 8.25 लाख करोड़ रुपए रहा है। यह जानकारी वित्त मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को दी गई। 
वित्त मंत्रालय ने कहा कि इस अवधि के दौरान सरकार की कुल प्राप्तियां 18 लाख करोड़ रुपए से अधिक रही हैं जो 2025-26 के बजट अनुमान का 51.5 प्रतिशत है, जबकि अप्रैल से अक्टूबर अवधि में कुल व्यय 26.25 लाख करोड़ रुपए रहा जो बजट लक्ष्य का 51.8 प्रतिशत है। अप्रैल से अक्टूबर अवधि में राजस्व प्राप्तियां 17.63 लाख करोड़ रुपए रही हैं, जिनमें से कर राजस्व 12.74 लाख करोड़ रुपए और गैर-कर राजस्व 4.89 लाख करोड़ रुपए रहा। 
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार को 2.69 लाख करोड़ रुपए का लाभांश दिए जाने से गैर-कर राजस्व में भारी वृद्धि दर्ज की गई, जबकि पिछले वर्ष केंद्रीय बैंक द्वारा सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित किए गए थे। इस उच्च लाभांश से केंद्र सरकार को राजकोषीय घाटा कम करने में मदद मिलेगी। 
चालू वित्त वर्ष के बजट में मध्यम वर्ग पर आयकर का बोझ कम किए जाने से राजस्व घाटा 2.44 लाख करोड़ रुपए या वित्त वर्ष के बजट लक्ष्य का 46.7 प्रतिशत रहा है। इस कदम से उपभोक्ताओं के हाथों में अधिक खर्च करने योग्य आय भी आई है, जिससे अर्थव्यवस्था में समग्र मांग बढ़ने और विकास को गति मिलने की उम्मीद है। व्यय के मोर्चे पर केंद्र सरकार ने खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम जैसी प्रमुख सब्सिडी पर लगभग 2.46 लाख करोड़ रुपए खर्च किए। यह संशोधित वार्षिक लक्ष्य का 64 प्रतिशत था। 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 4.4 प्रतिशत निर्धारित किया, जो देश की राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने के लिए घाटे में कमी लाने की सरकार की प्रतिबद्धता का हिस्सा है। संशोधित अनुमान के अनुसार, 2024-25 के लिए भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.8 प्रतिशत था। 
राजकोषीय घाटे में कमी अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों को मजबूत करती है और मूल्य स्थिरता के साथ विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। इससे सरकार द्वारा उधारी में कमी आती है, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में कॉर्पोरेट और उपभोक्ताओं को ऋण देने के लिए अधिक धनराशि बचती है, जिससे आर्थिक विकास में तेजी आती है। -आईएएनएस

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