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नोटबंदी से धान की खरीद भी प्रभावित

Source : business.khaskhabar.com | Dec 26, 2016 | businesskhaskhabar.com Commodity News Rss Feeds
 demonetisation affect the paddy procurement 146671बांदा। नोटबंदी को डेढ़ महीने से ज्यादा हो गए हैं, फिर भी लोग रोज नकदी की कमी से होने वाली परेशानियों से गुजर रहे हैं। नोटबंदी से सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रही है, क्योंकि वहां लोगों को ऑनलाइन बिक्री और खरीदारी समझ नहीं आ रही है।

वहीं ग्रामीण बैंक शाखों में इतनी नकदी भी नहीं है कि वे सबकी जरूरतों को पूरा कर सके। अब किसानों को धान बेचने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें नकदी की कमी के कारण सरकारी रेट मोटा धान 1470 रुपये प्रति क्विंटलऔर पतला धान 1550 रुपये प्रति क्विंटल के बजाय सीधे व्यापारियों को 800 से 900 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर बेचना पड़ रहा है।

सीधे व्यापारियों के हाथों बेचने की मुख्य वजह नकदी तुरंत हाथ में आ जाना है, जबकि सरकारी खरीद में पैसा सीधे बैंक खातों में जा रहा है। नोटबंदी के बाद बैंक से पैसा निकालने में लोगों को परेशानी हो रही है।

यह समय रबी की फसल लगाने का है और इसी समय हुई नोटबंदी के कारण किसान बीज और खाद नहीं खरीद पा रहे हैं। कुछ किसानों को खेतों में फसल लगानी है, तो कुछ को लगी फसल में खाद डालनी है।

रबी की फसल अक्टूबर-नवंबर महीने में लगाई जाती है। रबी में गेहूं, जौ, चना, मसूर और सरसों की फसलें होती हैं।

तीन क्विंटल धान बेचकर आए ज्ञान बाबू बताते हैं कि उन्होंने 3300 रुपये का धान बेचा है, पर उन्हें व्यापारी ने 2 हजार रुपये देकर बाकी के पैसे एक हफ्ते बाद देने की बात कही है। उनके अनुसार, सभी किसान घाटा सहकर व्यापारियों को 800 या 900 रुपये में धान बेच रहे हैं, जबकि धान की सरकारी कीमत 1470 से लेकर 1550 रुपये प्रति क्विंटल है।

उनका कहना है कि सरकारी मंडी में धान न बेचने पर पैसा बैंक खाते में जाएगा, बैंक से कब तक पैसा निकलेगा, इसकी गारंटी नहीं है।

किसान बाला प्रसाद (50) नकदी की कमी से परेशान हैं। वह भी 10 क्विंटल धान बेच चुके हैं, पर 4000 रुपये ही उनके हाथ में आए हैं। वह कहते हैं, ‘‘पैसे न होने के कारण सारा धान उधार में ही जा रहा है।’’ वह प्रधानमंत्री के फैसले को सही बता रहे हैं, पर परेशानी लंबे समय तक बने रहने से दुखी हैं।

उनका कहना है कि अगर रिजर्व बैंक की तैयारी पूरी नहीं थी, तब नोटबंदी फरवरी में की जानी चाहिए थी। उस समय किसानों को कम परेशानी होती।

प्रसाद ने कहा कि इस समय मिट्टी में नमी है, जिस कारण किसान जल्द से जल्द अनाज बोना चाह रहे हैं। लेकिन हाथ में पैसे नहीं होने के कारण वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं।

नरैनी धान खरीद केंद्र के अधिकारी प्रेम शंकर तिवारी इस बात को नकारते हैं कि सरकारी धान खरीद पर नोटबंदी का प्रभाव पड़ा है। वह कहते हैं, ‘‘हमने अब तक 162 क्विंटल 75 किलो धान खरीदा है। परेशानी की कोई बात नहीं है, किसानों को पैसा उनके बैंक खाते में दिया जा रहा है।’’

अधिकारी शायद नहीं जानते कि किसानों को बैंक से एक बार में दो हजार रुपये ही मिल पा रहे हैं। इन पैसों से उन्हें अपने घर का खर्च भी चलाना है। वे अगर खेत में पैसा लगा देंगे तो उनका घर कैसे चलेगा?
(आईएएनएस/खबर लहरिया)