कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की बैठक में दाल मिल एसोसिएशन ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव
Source : business.khaskhabar.com | Jun 11, 2025 | 
इंदौर। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2026-27 की रबी फसलों (चना, मसूर, गेहूँ, सरसों व अन्य तिलहन) के विपणन सत्र के लिए मूल्य नीति निर्धारित करने हेतु 11 जून 2025 को दोपहर 3 बजे कृषि भवन, नई दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक संपन्न हुई । यह बैठक आयोग के चेयरमैन विजयपाल की अध्यक्षता में आयोजित की गई। भारत सरकार के कृषि विकास एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की इस बैठक में देश के विभिन्न व्यापारिक संगठनों और व्यापारी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन की ओर से, देश के कृषि आधारित दाल उद्योगों का प्रतिनिधित्व करते हुए, संस्था के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने दाल उद्योगों और देश के किसानों के हित में कई सुझाव और प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखे।
प्रमुख सुझावों में शामिल था महंगाई के कारण किसानों को कृषि लागत का उचित मूल्य देने की आवश्यकता पर जोर, साथ ही कृषि उपज का अधिकतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाने का अनुरोध किया गया।
एसोसिएशन ने सभी प्रकार के दलहनों के आयात पर ड्यूटी लगाने की मांग की, ताकि अत्यधिक आयात पर अंकुश लग सके, क्योंकि तुअर, उड़द, मसूर, चना, मटर सहित अन्य दलहनों के भारी आयात से किसानों को नुकसान हो रहा है।
एसोसिएशन ने कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस, म्यांमार, जिम्बाब्वे, मलावी, केनिया और साउथ अफ्रीका से बड़े पैमाने पर आयातित दलहनों का भी उल्लेख किया, जिससे घरेलू कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है । दाल उद्योगों और सोयाबीन के सॉल्वेंट प्लांट्स को भी अत्यधिक आयात के कारण हो रहे नुकसान और कारखानों के बंद होने की बात कही गई। किसानों को अच्छी गुणवत्ता (Best Quality) के बीज उपलब्ध कराने पर भी बल दिया गया, ताकि फसल में बीमारियों और कीटों की समस्या से बचा जा सके और बेहतर फसल प्राप्त हो सके।
एक महत्वपूर्ण मांग पूरे भारत में कृषि उपज मंडी शुल्क को एक समान 0.50% करने की थी ।
वर्तमान में विभिन्न राज्यों में यह शुल्क अलग-अलग दरों पर लिया जाता है, जैसे मध्य प्रदेश में 1.20%, महाराष्ट्र में 0.80%, राजस्थान में 2.10% और अन्य राज्यों में भिन्न-भिन्न दरें हैं ।
मटर के अत्यधिक आयात से चने और मसूर के दाम कम होने और किसानों को हो रहे नुकसान पर चिंता व्यक्त की गई।
अंत में, नेफेड (NAFED) द्वारा खरीदी गई कृषि उपज को लगभग 2 साल तक भंडारित करने की प्रथा पर आपत्ति जताई गई, जिससे गुणवत्ता खराब होने और कीटों के पैदा होने की संभावना रहती है । सुझाव दिया गया कि सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी गई कृषि उपज को एक वर्ष के भीतर बेचा जाना चाहिए, और बिक्री/डिलीवरी के समय गुणवत्ता प्रमाणित होनी चाहिए ।
इन सभी सुझावों पर बैठक में विस्तारपूर्वक चर्चा हुई ।
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