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 सुप्रीम कोर्ट ने दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के प्रमुख प्रावधानों की वैधता बरकरार रखी
 

Source : business.khaskhabar.com | Nov 10, 2023 | businesskhaskhabar.com Commodity News Rss Feeds
 supreme court upholds validity of key provisions of insolvency and bankruptcy code 2016 599202नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को व्यक्तिगत गारंटरों की दिवाला समाधान प्रक्रिया से संबंधित दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) के कई प्रमुख प्रावधानों की वैधता बरकरार रखी।

सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विवादित प्रावधानों की संवैधानिकता को बरकरार रखते हुए कहा कि आईबीसी मनमानी के दोषों से ग्रस्त नहीं है।

यह माना गया कि वह व्यक्तिगत गारंटरों को दिए जाने वाले सुनवाई के अवसर को पढ़कर कानून को "पुनर्लिखित" नहीं कर सकता।

याचिकाकर्ताओं ने संहिता के कई प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा कि वे न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने में विफल रहे, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21, 14 और 19 (1) (जी) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करते हैं।

इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत को बताया था कि आईबीसी प्रावधान सुनवाई के उचित अवसर के बिना रोक और दिवालियापन की कार्यवाही लगाकर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत आजीविका और जीवन के अधिकार में बाधा डालते हैं।

यह तर्क दिया गया कि आईबीसी की धारा 95(1), 96(1), 97(5), 99(1), 99(2), 99(4), 99(5), 99(6), और 100 प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने में विफल रहा और इन प्रावधानों को लागू करने में उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी।

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी थी कि धारा 95 जो ऋण के अस्तित्व से संबंधित है, में औपचारिक सुनवाई का अभाव है और कथित गारंटर को अपना मामला पेश करने की अनुमति दिए बिना एक रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) की नियुक्ति शुरू की गई है।

सिंघवी ने आरपी द्वारा "घुसपैठ वाले सवालों" और व्यक्तिगत गोपनीयता के खतरों पर भी चिंता जताई।

दूसरी ओर, केंद्र और एसबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत के समक्ष कहा था कि दिवालियेपन का समयबद्ध समाधान आईबीसी का दिल और आत्मा है।

उन्होंने तर्क दिया कि धारा 14 के विपरीत धारा 96 के तहत अधिस्थगन गारंटर या देनदार के लाभ के लिए है।

संसद ने दिवालियेपन के समाधान में तेजी लाने और देश में खराब ऋण के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए 2016 में आईबीसी की शुरुआत की थी, जिसने बैंकिंग प्रणाली को काफी प्रभावित किया था। संहिता का उद्देश्य छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना और व्यापार करने की प्रक्रिया को कम बोझिल बनाना है। जब पुनर्भुगतान में चूक होती है, तो लेनदार देनदार की संपत्ति पर नियंत्रण हासिल कर लेते हैं और उन्हें दिवालियेपन को हल करने के लिए निर्णय लेना चाहिए। कोड के तहत कंपनियों को दिवालियापन की पूरी प्रक्रिया 180 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी। हालांकि, यदि लेनदार विस्तार पर आपत्ति नहीं उठाते हैं तो समय सीमा बढ़ाई जा सकती है। प्रावधानों के तहत देनदार और लेनदार दोनों एक-दूसरे के खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

--आईएएनएस

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