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अंधेरे में तीर चलाना आर्थिक सुधार नहीं :गवर्नर राजन

Source : business.khaskhabar.com | Aug 28, 2015 | businesskhaskhabar.com Market News Rss Feeds
 Reforms cant be shots in dark Rajanमुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने गुरूवार को कहा कि देश में लगातार और दृढ़ता से आर्थिक सुधार किए जाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि अंधेरे में तीर चलाने को आर्थिक सुधार नहीं कहा जा सकता। राजन ने आरबीआई की 2014-15 की सालाना रिपोर्ट में गवर्नर के सिंहावलोकन में लिखा है, ""पहले सुधार की गति बैंकों और खासकर हमारे सरकारी बैंकों की क्षमता से तय होती थी।"" उन्होंने कहा, ""बैंकिंग प्रणाली पर चल रहा दबाव यह संकेत देता है कि वास्तविक अर्थव्यवस्था बैंकिंग प्रणाली का इंतजार नहीं कर सकती और सुधार की गति धीमी रखने से बैंकिंग प्रणाली का जोखिम घटने की बजाए बढ़ सकता है।

वित्तीय क्षेत्र में कई मोर्चे पर सुधार करन की जरूरत है।"" उन्होंने सिंहावलोकन में लिखा है, ""भारत जैसे ब़डे और विशाल आबादी वाले देश में सुधार अंधेरे में चलाया गया तीर नहीं हो सकता, क्योंकि यह देश को अनिश्चितता और जोखिम की तरफ धकेल सकता है। जहां भी संभव हो, हमें धीमे-धीमे लेकिन दृढ़ता से बढ़ना होगा। सुधार की संभावना बढ़ाते जाना होगा और इससे पैदा होने वाली अनिश्चितता को घटाते जाना होगा।"" उन्होंने कहा कि भारतीय सुधार की सही दिशा चीन की एक कहावत से समझी जा सकती है, जिसमें कहा गया है कि पत्थरों को टटोल-टटोल कर पग रखते हुए नदी पार करनी है।

उन्होंने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में प्रवेश आसान बनाकर और प्रतियोगिता बढ़ाकर सुधार किया जा सकता है। राजन उवाच, ""हमें यथासंभव नियामकीय विशेषाधिकार समाप्त करने हैं और बाधाएं भी समाप्त करनी हैं।"" उन्होंने कहा, ""छूट और सब्सिडी के जरिए सबसे अच्छी तरह से सहभागिता नहीं बढ़ाई जा सकती, बल्कि इसके लिए सहयोगी ढांचा बनाना होगा, जिसमें पारदर्शिता अधिक हो, समझौते को बाध्यकारी बनाया जाए और बाजार में हिस्सा लेने वाले की अनुचित परिपाटियों से रक्षा हो।"" उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के सहारे कम खर्च में सहयोगी ढांचा बनाया जा सकता है और मुख्यधारा से कटे हुए लोगों को वित्तीय सेवा के दायरे में लाया जा सकता है।

राजन ने कहा, ""ये ही वे सिद्धांत हैं, जो हमारे मध्यावधि सुधार की रणनीति को मार्गदर्शित करते हैं।"" आरबीआई के बारे में गवर्नर ने कहा कि यह एक सक्षम संस्थान है, जिसने अपने कर्मचारियों की संख्या 1981 में 35,500 से घटाकर 16,700 तक लाई है। उन्होंने कहा कि आरबीआई ने 659 अरब रूपये का सरप्लस सरकार को भी दिया है।