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नकदी के संकट से जूझ रहा चीनी उद्योग : इस्मा

Source : business.khaskhabar.com | Sep 17, 2020 | businesskhaskhabar.com Commodity News Rss Feeds
 sugar industry struggling with cash crisis isma 452394नई दिल्ली। देश के चीनी उद्योग का शीर्ष संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) का कहना है कि सरकार की ओर से चीनी निर्यात अनुदान और बफर अनुदान का भुगतान नहीं होने से चीनी मिलें नकदी के संकट से जूझ रही हैं, जिसके चलते गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान नहीं हो रहा है। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने आईएएनएस को बताया कि चीनी निर्यात अनुदान और बफर स्टॉक अनुदान के व अन्य अनुदान के तौर पर भारत सरकार को 8,000 करोड़ रुपये से अधिक की रकम चीनी मिलों को भुगतान करना है लेकिन इसके लिए कोई बजटीय आवंटन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से भुगतान नहीं होने से चीनी उद्योग नकदी के संकट से जूझ रहा है जिससे किसानों के बकाये का भुगतान नहीं हो रहा है।

भारत ने चालू शुगर सीजन 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी का रिकॉर्ड निर्यात किया है, लेकिन गन्ना किसानों का बकाया अभी भी मिलों पर 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है।

गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान नहीं होने को लेकर पूछे गए अविनाश वर्मा ने कहा, "हमने घरेलू कीमत से करीब 10 रुपये प्रति किलो घाटे पर चीनी निर्यात किया। निर्यात करीब 20-21 रुपये प्रति किलो पर हुआ जबकि घरेलू बाजार चीनी का दाम करीब 31-32 रुपये प्रति किलो था। भारत सरकार निर्यात अनुदान से इस घाटे की भरपाई करती है। लेकिन निर्यात अनुदान, बफर स्टॉक अनुदान और सॉफ्ट लोन अनुदान के तौर पर हमें भारत से 8,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम मिलनी है, लेकिन इसके लिए सरकार ने बजट आवंटन ही नहीं किया है, जिसके कारण खाद्य मंत्रालय इस बकाये का भुगतान करने में सक्षम नहीं है।"

उन्होंने बताया कि इसके अलावा, राज्यों सरकारों के पास भी बिजली के बकाये के पास करीब 1,500 करोड़ रुपये है जिसका भुगतान नहीं हो रहा है।

वर्मा ने कहा कि करीब 35,000 करोड़ रुपये की चीनी इंवेंटरी में फंसी हुई है, जिसके कारण मिलों के पास नकदी का संकट है। उन्होंने कहा, "इस महीने के आखिर में करीब 108-110 लाख टन चीनी बचा रहे रहेगा जिसकी का मूल्य बाजार भाव पर करीब 35,000 करोड़ रुपये होगा।"

इस्मा महानिदेशक ने कहा, "चीनी उद्योग के पास नकदी के इन्फ्लो और आउटफ्लो में मिस्मैच के कारण नकदी का संकट है।"

उन्होंने कहा कि गóो का जो एफआरपी (लाभकारी मूल्य) 275 रुपये प्रति क्विं टल (शुगर सीजन 2019-20 के लिए) है उस पर चीनी का उत्पादन मूल्य करीब 39 रुपये प्रति किलो आता है जबकि चीनी का एमएसपी (न्यूनतम बिक्री मूल्य) 31 रुपये प्रति किलो है। उन्होंने कहा कि इस अंतर से भी चीनी मिलों को घाटा होता है।

वर्मा ने कहा कि नीति आयोग ने भी कहा कि चीनी का एमएसपी 33 रुपये प्रति किलो होना चाहिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि चीनी का एमएसपी 34 रुपये किलो होना चाहिए, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि 35-36 रुपये प्रति किलो होना चाहिए, कर्नाटक सरकार ने लिखा कि 35 रुपये किलो होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद अब तक चीनी के एमएसपी में अब तक बढ़ोतरी नहीं की गई है।  (आईएएनएस)

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