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आईएमएफ ने वित्त वर्ष 26 और 27 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर को रिवाइज कर 6.4 प्रतिशत किया

Source : business.khaskhabar.com | July 30, 2025 | businesskhaskhabar.com Business News Rss Feeds
 imf revises indias gdp growth rate for fy26 and 27 to 64 percent 740509नई दिल्ली । अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 26 और 27 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है। दोनों ही आंकड़ों में थोड़ा संशोधन किया गया है, जो अप्रैल के पूर्वानुमान की तुलना में अधिक अनुकूल बाहरी वातावरण को दर्शाता है।
 
आईएमएफ ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अपने अनुमान को 20 आधार अंक (बीपीएस) बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है। 
ग्लोबल एजेंसी ने वित्त वर्ष 27 के लिए अपने विकास पूर्वानुमान को भी 10 आधार अंक (बीपीएस) बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है।
आईएमएफ ने अपनी रिपोर्ट में कहा, "2025 में वैश्विक विकास दर 3.0 प्रतिशत और 2026 में 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जो अप्रैल 2025 के विश्व आर्थिक परिदृश्य से ऊपर की ओर संशोधन है। यह टैरिफ से पहले अग्रिम भुगतान, कम प्रभावी टैरिफ दरों, बेहतर वित्तीय स्थितियों और कुछ प्रमुख क्षेत्रों में राजकोषीय विस्तार को दर्शाता है।"
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वैश्विक मुद्रास्फीति में गिरावट की उम्मीद है, लेकिन अमेरिकी मुद्रास्फीति के लक्ष्य से ऊपर रहने का अनुमान है। संभावित रूप से उच्च टैरिफ, बढ़ी हुई अनिश्चितता और भू-राजनीतिक तनाव से नकारात्मक जोखिम बना हुआ है।
उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, 2025 में विकास दर 4.1 प्रतिशत और 2026 में 4.0 प्रतिशत रहने की उम्मीद है।
ग्लोबल हेडलाइन मुद्रास्फीति 2025 में 4.2 प्रतिशत और 2026 में 3.6 प्रतिशत तक गिरने की उम्मीद है, जो अप्रैल में अनुमानित दर के समान है। समग्र तस्वीर में महत्वपूर्ण अंतर-देशीय अंतर छिपे हैं, पूर्वानुमानों के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति लक्ष्य से ऊपर रहेगी और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में कम रहेगी।
आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है, "आउटलुक के लिए जोखिम नकारात्मक दिशा में बने हुए हैं, जैसा कि अप्रैल 2025 के वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) में था। प्रभावी टैरिफ दरों में उछाल से विकास दर कमजोर हो सकती है। बढ़ी हुई अनिश्चितता गतिविधियों पर भारी पड़ सकती है, साथ ही अतिरिक्त टैरिफ की समय सीमा भी समाप्त हो रही है, जबकि ठोस, स्थायी समझौतों पर प्रगति नहीं हो रही है।"
भू-राजनीतिक तनाव ग्लोबल सप्लाई चेन को बाधित कर सकते हैं और वस्तुओं की कीमतों को बढ़ा सकते हैं। बड़ा राजकोषीय घाटा या जोखिम से बचने की प्रवृत्ति में वृद्धि दीर्घकालिक ब्याज दरों को बढ़ा सकती है और वैश्विक वित्तीय स्थितियों को कठिन बना सकती है।
रिपोर्ट के अनुसार, "विखंडन की चिंताओं के साथ वित्तीय बाजारों में अस्थिरता फिर से पैदा हो सकती है। सकारात्मक पक्ष यह है कि अगर व्यापार वार्ता एक पूर्वानुमानित फ्रेमवर्क पर पहुंचती है और शुल्कों में कमी आती है, तो वैश्विक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।"


--आईएएनएस


 

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