इलेक्ट्रिक वाहनों से क्रांति: टू-व्हीलर और थ्री-व्हीलर चलाना पेट्रोल से कहीं ज्यादा सस्ता!
Source : business.khaskhabar.com | Jun 27, 2025 | 
नई दिल्ली। भारत में बढ़ते वाहन प्रदूषण, ईंधन की बढ़ती कीमतों और ऊर्जा खपत की चिंताओं के बीच, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की एक नई रिपोर्ट ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के पक्ष में एक महत्वपूर्ण खुलासा किया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, दोपहिया और तिपहिया सेगमेंट में इलेक्ट्रिक वाहन चलाना अब पारंपरिक पेट्रोल वाहनों की तुलना में कहीं अधिक किफायती हो गया है, जो देश के परिवहन परिदृश्य में एक बड़े बदलाव का संकेत है।
इलेक्ट्रिक वाहन कितने सस्ते?
CEEW के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में एक इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन को चलाने का औसत खर्च केवल ₹1.48 प्रति किलोमीटर आता है। इसकी तुलना में, एक पेट्रोल दोपहिया वाहन चलाने का खर्च ₹2.46 प्रति किलोमीटर तक पहुंच जाता है। यह अंतर व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों तरह के उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है। तिपहिया वाहनों के लिए, इलेक्ट्रिक ऑटो रिक्शा का परिचालन खर्च मात्र ₹1.28 प्रति किलोमीटर है, जबकि पेट्रोल थ्री-व्हीलर के लिए यह खर्च ₹3.21 प्रति किलोमीटर है। इसका मतलब है कि इलेक्ट्रिक ऑटो चलाना पेट्रोल ऑटो से लगभग तीन गुना सस्ता है।
वाणिज्यिक क्षेत्र पर बड़ा प्रभावः
ये आंकड़े विशेष रूप से वाणिज्यिक टैक्सी और डिलीवरी सेवाओं के लिए गेम-चेंजर साबित होंगे, जहाँ प्रत्येक किलोमीटर की लागत सीधे लाभ मार्जिन को प्रभावित करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि शहरी क्षेत्रों में, जहाँ दूरी कम होती है और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर आसानी से उपलब्ध है, इलेक्ट्रिक वाणिज्यिक वाहनों की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ेगी।
EV लागत में गिरावट के कारणः
इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत में इस उल्लेखनीय कमी के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे प्रमुख है बैटरी की घटती लागत, जो EV की कुल कीमत का एक बड़ा हिस्सा होती है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही सब्सिडी और देश भर में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के निरंतर सुधार ने भी इलेक्ट्रिक वाहनों को अधिक किफायती बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, रिपोर्ट यह भी बताती है कि निजी इलेक्ट्रिक कारों की परिचालन लागत अभी भी राज्यों के अनुसार भिन्न है, जिसका मुख्य कारण बिजली की अलग-अलग दरें, शुरुआती लागत और राज्य-विशिष्ट सब्सिडी योजनाएं हैं।
भारी वाहनों के लिए चुनौतियांः
जहां दोपहिया और तिपहिया सेगमेंट में इलेक्ट्रिक वाहन आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो रहे हैं, वहीं मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहन जैसे ट्रक और बसों के लिए इलेक्ट्रिक विकल्प अभी भी महंगे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 तक डीजल, CNG और विशेष रूप से LNG (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) इन भारी वाहनों के लिए अधिक किफायती विकल्प बने हुए हैं। रिपोर्ट यह भी अनुमान लगाती है कि 2040 तक भारी परिवहन के लिए LNG सबसे सस्ता विकल्प बना रहेगा।
भविष्य की दिशा और चेतावनीः
CEEW के आंकड़ों के अनुसार, यदि परिवहन प्रणाली में सुधार की गति धीमी रही, तो डीजल पर निर्भरता 2047 तक बनी रह सकती है, जबकि पेट्रोल की मांग 2032 तक अपने चरम पर पहुंच जाएगी। CEEW की सीनियर प्रोग्राम लीड, डॉ. हिमानी जैन ने चेतावनी दी है कि भारत का परिवहन क्षेत्र ऊर्जा सुरक्षा, वायु प्रदूषण और शहरी नियोजन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गंभीर संकट का सामना कर रहा है। उन्होंने नीतिगत स्तर पर त्वरित और साहसिक कदमों की वकालत की, अन्यथा आने वाले वर्षों में ट्रैफिक और प्रदूषण का स्तर बेकाबू हो सकता है।
समाधान और सिफारिशेंः
रिपोर्ट में समाधान के तौर पर EV फाइनेंसिंग को आसान बनाने, विशेषकर सरकारी बैंकों और NBFCs के माध्यम से ऋण सुविधाओं को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया है। बैटरी रेंटल मॉडल, EMI विकल्प और सस्ती रखरखाव योजनाओं को प्रोत्साहित करने की भी सिफारिश की गई है ताकि शुरुआती उच्च लागत EV अपनाने में बाधा न बने।
इसके अतिरिक्त, VAHAN पोर्टल जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों से जिलेवार वाहन स्वामित्व और चार्जिंग सुविधा डेटा एकत्र करने का सुझाव दिया गया है, ताकि अधिक प्रभावी नीतियां बनाई जा सकें। CEEW का ट्रांसपोर्टेशन फ्यूल फोरकास्टिंग मॉडल (TFFM) नीति निर्माताओं और उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण बन सकता है, जो EV अपनाने, ईंधन मांग, कार्बन उत्सर्जन और आर्थिक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने में मदद करेगा।
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